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बिलाली में शीतला माता का मेला हुआ आयोजित

स्मार्ट हलचल,बानसूर।कस्बे के बिलाली में सेढ़/शीतला माता माता का लक्खी मेला सोमवार सुबह 4 बजे से शुरू हुआ। सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की मंदिर के बाहर लंबी कतार लगी हुई है। महिलाएं ने सुबह से माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया। मेले में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पुलिस जाब्ता तैनात किया गया। आपको बता दे की सौम्य तलहटी में बसा हुआ गांव बिलाली बानसूर उपखण्ड का अंतिम दक्षिणी पश्चिमी गांव है। गांव की पहचान प्राकृतिक रूप से तो यहां के विशाल पर्वत से हैं। जिसकी ऊंचाई 775 मीटर है। यह गगनचुंबी पहाड़ भौगोलिक उच्च शिखर सर्वेक्षण आंकड़ों में 20वें स्थान पर है। लेकिन धार्मिक रूप से इसे शीतला माता मंदिर से पहचान मिली हैं। मंदिर से वर्तमान में बिलाली माता (सेढ़ माता) के नाम से प्रसिद्ध है। यह मंदिर हिन्दू धर्मावलंबीयों की आस्था का केंद्र हैं।

कहा जाता है कि स्कंद पुराण में शीतलाष्टक स्तोत्र में वर्णित माता शीतला (शिव की अर्द्धांगिनी ब्रह्मपुत्री) की मूर्ति आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले (जब गांव भी नही बसा था) धरती चीर कर निकली और आकाशवाणी से एक गडरिए से उसकी विस्थापना और गांव बसावट की बात कहीं थी। पहले तो गडरिया डर गया पर फिर माता का परिचय और लोक कल्याण जानकर इसको विधि विधान से मंदिर प्रतिष्ठान करवाया। पश्चिमी मुखी गुंबदाकार 60 फीट ऊंचे मंदिर के बीचों-बीच चौकोर गर्भगृह में माता शीतला की हजारों सुविखंडित निसृजक गैर नक्काशी स्वप्राकट्य मूर्तियां विराजित हैं। मंदिर में एक आटोमेटिक आरती मशीन एक बड़ा ढोल और पीतल की घंटियों के साथ एक दान पात्र भी रखा हुआ हैं। मंदिर के सामने भैरवनाथ (लाकड़ा) का मंदिर हैं और पास में एक अन्य मंदिर में सुसज्जित शेरावाली माता की अष्टधातु मूर्ति विराजमान है। माता के मंदिर में वैसे तो श्रद्धालु रोजाना आते रहते हैं। लेकिन माघ महीने में पड़ने वाले सोमवार और गुरुवार को जातरुओं की विशेष भीड़ देखने को मिलती है। शीतला माता का विशाल मेला चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी (तरुणा बास्योडा) और बैशाख कृष्ण पक्ष अष्टमी (बुढ़ा बास्योडा) पर लगता हैं।

मेले से एक दिन पहले रांधापुआ (शीतला भोग पूजन पकवान) मनाया जाता है। इस दिन गांव से नेजा (बांस की लंबी लकड़ी से बंधे कपड़े के भारी ध्वज) उठाए जाते हैं और नाचते गाते ग्रामवासी मंदिर में चढ़ाकर मेले की विधिवत शुरुआत करते है। सेढ़ल भगताई (कुम्हार जाति के द्वारा ढफ पर माता को रिझाने के भजन) गायी जाती है। माता को एक दिन पहले पका हुआ ठंडा (बासी) भोजन पसंद हैं। राबड़ी गुलगुले पूरी शक्कर पारे, रोटी, दही, चावल, लापसी, कंडवारी का भोग लगता है। वैसे आजकल माता के अनेक गीत प्रचलित हैं। लेकिन उम्रदराज ग्रामीण महिलाओं के मुख से पारंपरिक गीत “ऊजलो कंडवारों मीठी लापसी ए मां” या हरियो हरियों गौबर भैया कांच की पैड़ी तेरों मंढ लीपण आई ए सेडल माता एक होलरियो दो प्रमुख हैं। स्कंद पुराण के शीतलाष्टक स्तोत्रानुसार माता गर्दभ की सवारी करती हैं और हाथों में कलश सूप झाडू नीम पत्ती धारण करती हैं। यह चेचक, छोटी माता, पीत, ज्वर, फोड़ा फुंसी, कोढ़ (कुष्ठ) नेत्ररोग को ठीक करती हैं।

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