(महेन्द्र नागौरी)
भीलवाड़ा /स्मार्ट हलचल/जयपुर/भ्रष्टाचार निरोधक महक़मा द्वारा मेयर मुनेश गुर्जर के खिलाफ 19 सितंबर को चार्जशीट पेश की गई थी लेकिन मुनेश गुर्जर कोर्ट में उपस्थित नहीं हुई और अपने अधिवक्ता के जरिए प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करवाया कि वह बिमार है और डॉक्टर ने उसे 07 दिन का बेड रेस्ट करने की सलाह दी है। जिसका विरोध शिकायतकर्ता के अधिवक्ता पूनम चंद भंडारी ने किया था लेकिन कोर्ट ने प्रार्थना पत्र को स्वीकार कर लिया और उदार रूख अपनाते हुए 5 अक्टूबर को पेश होने की अनुमति दी।
इस आदेश के विरुद्ध परिवादी सुधांशु गिल के अधिवता ने हाईकोर्ट में आज फौजदारी याचिका पेश कर मांग की है कि अधीनस्थ न्यायालय का आदेश निरस्त किया जाए और मुनेश गुर्जर को निर्देश दिए जाएं कि वह तुरंत कोर्ट में समर्पण करें।
याचिका में कहा गया है कि कोर्ट ने कानून के विरुद्ध आदेश दिया है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि अभियुक्त को प्रसंज्ञान लेने से पूर्व न्यायालय में उपस्थित होने से छूट दी जाय कोर्ट ने गलती की है तथा भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध उदार रुख अपनाया है जिससे आम जनता में गलत मैसेज जाता है कि बड़े लोगों और भ्रष्टाचारियों के मामले में न्यायालय सख्त नहीं है जबकि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाना चाहिए।
इसके अलावा मेयर ने बीमारी का बहाना बनाया है इसलिए मेडिकल बोर्ड गठित कर उसकी बीमारी की जांच की जानी चाहिए थी। सरकार और जांच एजेंसी भ्रष्टाचारी मुनेश गुर्जर को बचाना चाहती है इसलिए एसीबी ने और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने मुनेश गुर्जर के प्रार्थना पत्र का विरोध नहीं किया बल्कि सहमति जताई और कोर्ट ने भी मुनेश गुर्जर को 16 दिन का समय उपस्थित होने के लिए दिया है जबकि डॉक्टर की पर्ची के अनुसार उसे 7 दिन के बेडरेस्ट की सलाह दी गई थी।