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सरकार को करोड़ों का खर्च कर कैंप क्यों लगाने पड़ते हैं ⁉️अधिकारियों की लापरवाही, आलसी, भ्रष्टाचार…

सरकार को करोड़ों का खर्च कर कैंप क्यों लगाने पड़ते हैं ⁉️

अधिकारियों की लापरवाही, आलसी, भ्रष्टाचार, ऑन ड्यूटी रहते हुए स्वयं का कार्य करना, सरकार की कमज़ोर पकड़, राजनीति, टाइम पास करना….

इतने सारे कारणों के चलते जनता का करोड़ों रुपए इन कैंपों में लगाकर, कैंप आयोजित किया जाता है, क्या फिर भी कैंप में सारे काम हो जाते हैं ⁉️
नहीं केवल औपचारिकता फोटो खींचना दो चार काम करके वाही वाही लूटने का कार्य होता है। अगर सारे काम हो जाएंगे तो अगले कैंप में कौन आएगा

सारे अधिकारी कर्मचारी एक जैसे नहीं होते ईमानदार मेहनती भी है लेकिन उनकी संख्या कितनी है कमेंट में बताएं

सारे अधिकारी एक जैसे नहीं होते हैं कुछ अच्छे भी होते हैं। लेकिन अकेला कुछ नहीं कर पता है क्योंकि यह कार्य केवल एक व्यक्ति से नहीं होते हैं पूरी टीम होती है और कुएं में भांग घुली हुई है। जनता के कार्य नहीं करना टालम टोल नीति, इन कैंप के आयोजन का सबक बनती है। लेकिन फिर वही अधिकारी वही कर्मचारी ढाक के तीन पात….

जनसुनवाई एवं सतर्कता समिति की बैठक बनी अधिकारियों के लिए सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का तरीका

जनसुनवाई एवं सतर्कता समिति में परिवादियों की स्थिति देखने के बाद यह पता चलता है कि इस जनसुनवाई को अधिकारियों द्वारा सिर्फ मुफ्त की वाहवाही लूटने का तरीका बना लिया है ।

दो तीन महीने में एक बार किसी वृद्ध को अपने साथ खड़ा करके कलेक्टर साहब फोटो खिंचवा कर बड़े बड़े अक्षरों में समाचार पत्रों में खबर प्रकाशित करवाते हैं कि वृद्धा को मिली खुशी, हुई पेंशन चालु या फिर वृद्ध को मिली खुशी चालु हुआ मुफ्त का अनाज
तो आम जनता इन अधिकारियों से पुछना चाहती हैं कि ये पेंशन और राशन बन्द किया किसने जो आप इतने बड़े अक्षरों में समाचार पत्रों की सुर्खियां बनाते हो।

क्यों नहीं हो पाता है न्याय…??

जिला सतर्कता समिति एवं जनसुनवाई में वास्तविक तरीके से जनसुनवाई नहीं होने से लोग अपने आप को ठगा सा महसूस करते हैं ।

जन सुनवाई में ये सुनने में आया कि जिला सतर्कता समिति के अध्यक्ष जो कि खुद जिला कलेक्टर महोदय हैं वो सतर्कता की बैठक शुरू होने से पहले ही गायब हो जाते हैं फिर पीछे के अधिकारी जो बचते हैं वो सिर्फ विभाग के अधिकारियों के कागज यानि कि एक पक्ष को सुनते हुए निर्णय सुना देते हैं जिससे आम जनता अपने आप को ठगा महसूस करती हैं और जन सुनवाई को सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का तरीका बताते हैं।

कुछ परिवादियों ने बताया कि जिला सतर्कता समिति की बैठक नाम मात्र की होती हैं। अगर हम परिवादी किसी विभाग की शिकायत लेकर आते है तो हमारा पक्ष नहीं सुना जाता हैं। और सम्बंधित विभाग द्वारा दिये जाने वाले झुठे/सच्चे दस्तावेज को देखकर एक तरफा निर्णय देते हुए विभागीय अधिकारियों को बचाया जाता एवं आम जनता के साथ कुठाराघात किया जाता हैं और अगर कुछ बोले तो कहा जाता हैं कि ये जो दस्तावेज लाये वो सही है और तुम्हे कोई आपत्ति है तो अपील कर दो ।

आखिर कब तक ये जनसुनवाई सिर्फ सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का साधन मात्र रहेगा..??

कब तक इस लोकप्रियता के चक्कर मे आम आदमी पिसता रहेगा..???

क्या आम आदमी को न्याय मिलेगा या यूं ही मरेगा…?

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
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