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आधुनिक पीढ़ी हो रही पथभ्रष्ट किस ओर ले जा रहे पथ प्रदर्शक


आधुनिक पीढ़ी हो रही पथभ्रष्ट,The modern generation is getting misled

किस ओर ले जा रहे पथ प्रदर्शक


देश की प्रगति व संस्कृति मे नैतिक शिक्षा व संस्कारों का है महत्वपूर्ण योगदान

बानसूर। स्मार्ट हलचल/आज के इस आधुनिक दौर में भले ही शिक्षा के प्रतिशत में वृद्धि हुई है लेकिन आज का विद्यार्थी इस आधुनिकता के चंगुल में इस कदर फस चुका कि वह अपने नैतिक मूल्यों को भूलकर संस्कार विहीन हो चुका है। आज का विद्यार्थी कहीं ना कहीं संस्कार व नैतिक शिक्षा से वंचित हो गया है। सरकारों व पथ प्रदर्शको को आज के इस आधुनिक युग में संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। नैतिकता, शिष्टाचार जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं नैतिक मूल्यों से भरा व्यक्ति ही शिष्टाचार का महत्व समझता है। मनुष्य अपने संस्कार व नैतिक मूल्यों को आज भूलता जा रहा है। प्राचीन काल में नैतिक मूल्यों व शिष्टाचार के लिए कोई विशेष विषय प्रबंध नहीं था। यह सब बच्चे अपने पारिवारिक माहौल में रहकर ही सीखते थे करीब दो दशक पहले जब टीवी, मोबाइल का चलन ज्यादा नहीं था तब बच्चों का समय दादा-दादी या नाना नानी से कहानियां सुनने में व्यतीत होता था। उन कहानियां से बच्चों का सिर्फ मनोरंजन ही नही होता था अपितु बच्चों में शिष्टाचार व नैतिक संस्कारों का बीजारोपण भी होता था । उन कहानियों से बच्चों को विभिन्न तरह की अच्छाइयों व बुराइयो का अनोखा ज्ञान प्राप्त होता था इसके साथ ही बच्चों को एक संस्कारी व्यक्तित्व अपनाने की प्रेरणा भी मिलती थी। बच्चों के संस्कार की जिम्मेदारी उनके अभिभावकों का प्रथम कर्तव्य है। अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों में संस्कारों की नीव ना डालने से, ना सिर्फ बच्चों का भविष्य गलत दिशा में आगे बढ़ सकता है, बल्कि वे आगे चलकर परिवार व समाज के लिए कष्टकारी व घातक भी सिद्ध हो सकते हैं। विद्यालयों में भी शिक्षकों का दायित्व है कि वह इस को सुनिश्चित करें कि नैतिक शिक्षा बच्चों के लिए सिर्फ विषय बन कर ना रह जाए। शिक्षकों व अभिभावकों को संयुक्त रूप से बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ, नैतिक मूल्यों के प्रति जागरूकता करने का भी प्रयास करना चाहिए। बच्चों और युवाओं के संस्कार विहीन होने की जिम्मेदारी सिर्फ उन पर नहीं डाल सकते उनके अंदर नैतिकता व शिष्टाचार के बीज शिक्षक व अभिभावक को बाल्य काल में ही उनके अंदर डालने पड़ेगें। आधुनिक युग इंटरनेट, मोबाइल तथा टेक्नोलॉजी का युग है। बच्चों को पुरानी विचारधारा से बांधकर नहीं रख जा सकता। हमें भी रूढ़िवादिता को छोड़ना होगा लेकिन शिष्टाचार व नैतिकता के संस्कारों के बिना हम एक खुशहाल समाज का निर्माण नहीं कर सकते हैं। हमारे संस्कार हमारे पूर्वजों की पहचान है। संस्कारों के नाम पर प्राचीन रूढ़ीवादी विचारों को आधुनिक समय में लागू कर सकते हैं लेकिन नैतिक मूल्यो व शिष्टाचार के संस्कारों को भी नहीं भुला सकते। आधुनिकतम युग में हमें विचारों से आधुनिक बनने की आवश्यकता है संस्कारों से नहीं। अगर हम अपने संस्कार, संस्कृति व सभ्यता को भुला देंगे तो बच्चे अंग्रेजी नववर्ष तो मनाते रहेंगे लेकिन हिंदी नववर्ष की ओर कभी भी ध्यान नहीं जाएगा और ना ही वे कभी इनमें फर्क समझ पाएंगे, अगर आधुनिक युग में इनका बीजारोपण बच्चों में ना किया गया तो देश की प्रगति, संस्कृति व सभ्यता का विनाश तय है।

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