Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगगोंड जनजाति (Gond Tribe) ,गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों...

गोंड जनजाति (Gond Tribe) ,गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक

गोंड जनजाति (Gond Tribe) :

 

गोंड जनजाति विश्व के सबसे बड़े आदिवासी समूहों में से एक है। यह भारत की सबसे बड़ी जनजाति है इसका संबंध प्राक-द्रविड़ प्रजाति से है।

 

इनकी त्वचा का रंग काला, बाल काले, होंठ मोटे, नाक बड़ी व फैली हुई होती है। ये अलिखित भाषा गोंडी बोली बोलते हैं जिसका संबंध द्रविड़ भाषा से है।

 

ये ज़्यादातर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में पाए जाते हैं।

 

गोंड चार जनजातियों में विभाजित हैं: राज गोंड, माड़िया गोंड, धुर्वे गोंड, खतुलवार गोंड

 

गोंड जनजाति का प्रधान व्यवसाय कृषि है किंतु ये कृषि के साथ-साथ पशु पालन भी करते हैं। इनका मुख्य भोजन बाजरा है जिसे ये लोग दो प्रकार (कोदो और कुटकी) से ग्रहण करते हैं।

 

गोंडों का मानना है कि पृथ्वी, जल और वायु देवताओं द्वारा शासित हैं। अधिकांश गोंड हिंदू धर्म को मानते हैं और बारादेव (जिनके अन्य नाम भगवान, श्री शंभु महादेव और पर्सा पेन हैं) की पूजा करते हैं।

 

भारत के संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में अधिसूचित किया गया है।गोंड शब्द की उत्पत्ति के बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है। संभवत यह शब्द बाहरी लोगों द्वारा इस जनजाति को संदर्भित करने के लिए प्रयोग किया जाता था। कुछ लोग मानते हैं कि इस शब्द की उत्पत्ति कोंडा शब्द से हुई है जिसका अर्थ है पहाड़ी। गोंड स्वयं को कोइतूर कहते हैं, जिसे औपनिवेशिक विद्वान खोंड के स्व- पदनाम कुई से संबंधित मानते थे।
गोंडों की उत्पत्ति आज भी बहस का विषय बनी हुई है। कुछ लोगों ने दावा किया है कि गोंड असमान जनजातियों का एक समूह था जिन्होंने शासकों के एक वर्ग से मातृभाषा के रूप में प्रोटो-गोंडी (proto-Gondi) भाषा को अपनाया था, जो मूल रूप से विभिन्न पूर्व-द्रविड़ भाषाओं को बोलते थे। आरवी रसेल (R. V. Russel ) का मानना था कि गोंड दक्षिण से गोंडवाना में आए थे। गोंडों का पहला ऐतिहासिक संदर्भ कुछ मुस्लिम लेखक 14 वीं शताब्दी में गोंड जनजाति के उदय के रूप में चिह्नित करते हैं। विद्वानों का मानना है कि गोंडों ने गोंडवाना में शासन किया, जो अब पूर्वी मध्य प्रदेश से लेकर पश्चिमी ओडिशा तक और उत्तरी आंध्र प्रदेश से उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने तक फैला है, गोंड लोगों ने 13 वीं और 19 वीं शताब्दी ईस्वी के बीच गोंडवाना में शासन किया था।
गोंड लोगों ने चार राज्यों में शासन किया और वे गढ़ा-मंडला, देवगढ़, चंदा और खेरला हैं। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान कई किलों, महलों, मंदिरों, टैंकों और झीलों का निर्माण किया। गोंडों का पहला राज्य चंदा का था , जिसकी स्थापना 1200 में हुई थी, अगला गढ़ा राज्य था, बाद में खेरला और देवगढ़ राज्यों की स्थापना हुई। 16 वीं शताब्दी के अंत तक गोंडवाना राजवंश जीवित रहा। गढ़ा-मंडला अपनी योद्धा-रानी, रानी दुर्गावती के लिए प्रसिद्ध है, जिन्होंने 1564 में अपनी मृत्यु तक मुगल सम्राट अकबर के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। तब मंडला पर उनके बेटे बीर नारायण का शासन था, जिन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी मृत्यु तक लड़ाई लड़ी थी।
देवगढ़ की स्थापना 13वीं शताब्दी की शुरुआत में हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि जटबा नामक एक मुगल ने एक मंदिर उत्सव के दौरान पिछले शासकों को मार डाला था।
आइन-ए-अकबरी में बताया गया है कि, देवगढ़ में 2000 घुड़सवार, 50,000 पैदल और 100 हाथी थे और जटबा नामक एक सम्राट द्वारा शासित था। मुगलों द्वारा कुछ समय तक इन राज्यों पर शासन किया गया, लेकिन अंततः, गोंड राजाओं को इन्हे वापस कर दिया गया और वे केवल मुगल आधिपत्य के अधीन थे। 1740 के दशक में, मराठों ने गोंड राजाओं पर हमला करना शुरू कर दिया, जिससे राजा और प्रजा दोनों मैदानी इलाकों से जंगलों और पहाड़ियों में शरण लेने के लिए भाग गए। गोंड राजाओं के क्षेत्र पर मराठाओं का कब्जा तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध तक जारी रहा, इसके बाद अंग्रेजों ने शेष गोंड जमींदारों पर नियंत्रण कर लिया और राजस्व संग्रह पर कब्जा कर लिया। औपनिवेशिक शासन के दौरान, गोंडों को औपनिवेशिक वन प्रबंधन प्रथाओं द्वारा अधिकारहीन रखा गया। 1910 का बस्तर विद्रोह, औपनिवेशिक वन नीति के खिलाफ आंशिक रूप से सफल सशस्त्र संघर्ष था, जिसने बस्तर के मड़िया और मुरिया गोंडों के साथ-साथ इस क्षेत्र की अन्य जनजातियों के लिए जंगल तक पहुंच से वंचित कर दिया। 1920 के दशक की शुरुआत में, हैदराबाद राज्य के आदिलाबाद के एक गोंड नेता कोमाराम भीम ने निज़ाम के खिलाफ विद्रोह किया और एक अलग गोंड राज की मांग की। उन्होंने ही जल, जंगल, जमीन का प्रसिद्ध नारा गढ़ा, जो आजादी के बाद से आदिवासी आंदोलनों का प्रतीक रहा है। गोंड समूह अपने रीति-रिवाजों व परम्पराओं से बंधा हुआ है। जन्म से लेकर मृत्यु तक कई परम्पराओं को आज भी निभाते चले आ रहे हैं। प्राचीन गोंड कई खगोल विज्ञान विचारों पर विश्वास करते थे। सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र और मिल्की वे (Milky Way) के लिए उनके अपने स्थानीय शब्द थे। अधिकांश गोंड अभी भी प्रकृति पूजा की अपनी पुरानी परंपरा का पालन करते हैं। लेकिन भारत के अन्य जनजातियों की भांति उनके धर्म पर हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। इनके मूल धर्म का नाम “कोया पुनेम” (Koyapunem) है, जिसका अर्थ होता है- “प्रकृति का मार्ग”। कुछ गोंड सरना धर्म का पालन भी करते हैं। कई गोंड आज भी हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं और विष्णु तथा अन्य हिंदू देवी देवताओं की पूजा करते हैं। गोंड लोक परंपरा में बारादेव के नाम से जाने वाले एक उच्च देवता की पूजा की जाती है। गोंडी लोगों के पास रामायण का अपना संस्करण है जिसे गोंड रामायणी के रूप में जाना जाता है। ‘करमा’ गोंडों का मुख्य नृत्य है। पुरुषों द्वारा किया जाने वाले सैला नृत्य का भी चलन गोंड जनजाति में है। सिर के साफे में मोर पंख की कलगी और हाथ में डंडा या फारसा इन नृत्य का मुख्य आकर्षण है।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES