Homeसोचने वाली बात/ब्लॉग'ट्रैक्टर' नीति पर भी दोहरा मापदंड ?'Tractor' policy double standards

‘ट्रैक्टर’ नीति पर भी दोहरा मापदंड ?’Tractor’ policy double standards

निर्मल रानी
स्मार्ट हलचल/एक बार फिर देश किसान आंदोलन का सामना कर रहा है। हर बार की तरह इस बार भी किसानों ने ट्रैक्टर को ही अपना ‘सारथी’ चुना है। दरअसल आंदोलन के दौरान ट्रैक्टर व उससे जुड़ी ट्रॉली केवल किसानों को उनके आंदोलन स्थल तक लाने ले जाने का ही काम नहीं करता। बल्कि आंदोलन स्थल पर किसान इसे अपने चलते फिरते घरों की तरह भी इस्तेमाल करते हैं। आंदोलन लंबा खिंचने की स्थिति में यही ट्रैक्टर और उनमें लगी ट्राली उनके अस्थाई घर और गोदाम के रूप में भी काम करती है। राशन से लेकर कपड़ा कंबल ईंधन आदि सभी सामग्री इन चलते फिरते ‘डिपो ‘ में रखी जाती है। किसान हमेशा से ही ट्रैक्टर को अपनी खेती किसानी के सबसे मुख्य साधन के रूप में प्रयोग करता आ रहा है। इसी ट्रैक्टर से किसान अपनी फ़सल बाज़ार में पहुंचता है। खाद बीज आदि इसी पर लाद कर लाता ले जाता है। जुताई बुवाई के अलावा भी खेतों में इसके और भी कई काम होते हैं। चूँकि ट्रैक्टर किसानों व कृषि के मुख्य साधन की श्रेणी में आता है इसलिए सरकार ने यातायात के क़ानूनों में इसके लिये अनेक अलग प्रावधान किये हैं। इसे कृषि प्रसाधन की श्रेणी में रखा गया है न कि यातायात के वाहन की श्रेणी में। इसीलिए इससे सम्बंधित यातायात नियमों व यातयायत शुल्क, मार्ग कर आदि में कई तरह की विशेष छूट भी दी गयी है।
बावजूद इसके कि ट्रैक्टर यातायात के वाहनों की श्रेणी में नहीं आता फिर भी क्या नेता तो क्या प्रशासन,क्या किसान तो क्या आम लोग सभी इसका उपयोग अपनी सुविधानुसार करते हैं। देश का कोई भी चुनाव बिना ट्रैक्टर ट्रॉली का इस्तेमाल किये संभव ही नहीं। नेताओं की चुनावी रैलियों में भीड़ इकट्ठी करने से लेकर उनके चुनावी जुलूसों की लम्बाई बढ़ाने में,चुनाव प्रचार में और अंत में मतदाताओं को घरों से निकाल कर पोलिंग स्टेशन तक पहुँचाने और बाद में उनके विजय जुलूस तक में ट्रैक्टर ट्रॉली जमकर इस्तेमाल की जाती है। राजस्थान व पंजाब जैसे राज्यों में तो कई जगह ट्रैक्टर की इन्हीं ट्रॉलियों को आपस में जोड़कर बड़ी से बड़ी स्टेज बना दी जाती है जिनपर मुख्यमंत्री स्तर के नेता तक भाषण देते हैं। उस समय शायद प्रशासन अपनी आँखें मूंदे रहता है। उस समय उसे यह नहीं नज़र आता कि ट्रैक्टर सिर्फ़ खेती का साधन है यातायात या राजनैतिक इस्तेमाल का नहीं। इसी तरह गांव के शादी ब्याह आदि किसी भी समारोह में ट्रैक्टर का इस्तेमाल परिवार के लोगों व सामानों को लाने ले जाने में ख़ूब किया जाता है।
इसी तरह देश के अनेक राज्यों में ट्रैक्टर का प्रयोग धार्मिक समागम या तीर्थ स्थलों की यात्रा करने या वहां होने वाले समागमों में भाग लेने के लिये खुले तौर पर किया जाता है। कई धार्मिक मेले व समागम तो इतने विशाल होते हैं कि सरकार द्वारा बड़े पैमाने पर विशेष बसें चलाने के बावजूद तीर्थयात्रियों का सुगम आवागमन संभव नहीं हो पाता। उस समय केवल ट्रैक्टर ट्रॉलियां ही इस अंतर को पूरा कर पाती हैं। पंजाब व हरियाणा के होला मोहल्ला और कपाल मोचन जैसे प्रमुख मेलों की तो ट्रैक्टर ट्रॉली के इस्तेमाल के बिना कल्पना ही नहीं की जा सकती। किसान को प्रायः ख़ुद अपनी पारिवारिक ज़रूरतों के लिये भी ट्रैक्टर ट्रॉली का इस्तेमाल करना पड़ता है। लेकिन उस समय कभी भी सरकार द्वारा न तो ट्रैक्टर के चालान किये जाते हैं न ही उन्हें यातायात के क़ानून याद दिलाये जाते हैं।
परन्तु जब जब किसानों द्वारा इन्हीं ट्रैक्टर ट्रॉलीज़ का प्रयोग किसान आंदोलन में अपने आने जाने व सामान आदि रखने या इसमें विश्राम करने की ग़रज़ से किया जाता है केवल उसी समय सरकार को किसानों को ट्रैक्टर ट्रॉली सम्बन्धी नियमों की याद आती है। सोचने का विषय है जो किसान नेताओं के जुलूस रैलियों से लेकर चुनाव संपन्न करने तक व धर्मस्थलों से लेकर बड़े बड़े धार्मिक व राजनैतिक समागमों में अपने इस कृषि संसाधन का प्रयोग करने के लिये लोगों को उपलब्ध करता हो वही किसान अपने कृषि किसानी के अस्तित्व की रक्षा के लिये चलाये जाने वाले आंदोलनों में इसका प्रयोग क्यों नहीं कर सकता ? पिछले दिनों हरियाणा पंजाब की सीमा पर लगते शम्भू व खनोरी बॉर्डर पर पंजाब से दिल्ली जाने वाले किसानों के क़ाफ़िले को पुलिस द्वारा रोका गया। उस समय कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं भी घटीं। इसी दौरान पुलिस की एक उच्चाधिकारी ओर से किसानों को सम्बोधित एक वीडिओ जारी कर यही कहा गया कि उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार पुलिस किसानों को ट्रैक्टर ट्रॉलियों का इस्तेमाल मुख्य मार्ग पर यातायात के साधन के रूप में नहीं करने देगी। इसका मतलब तो साफ़ है कि सरकार हर जगह तो ट्रैक्टर सम्बन्धी यातायात नियमों की अनदेखी कर सकती है परन्तु किसान आंदोलन में किसानों को वही क़ानून याद दिलाये जाते है ? ‘ट्रैक्टर’ नीति पर अपनाये जाने वाले इस दोहरे मापदंड का मतलब साफ़ है कि सरकार किसानों के इस संसाधन से डरती और घबराती है ? शायद यही वजह है कि प्रशासन को सिर्फ़ किसान आंदोलन के समय ही ट्रैक्टर सम्बन्धी यातायात क़ानून आते हैं।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
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