काछोला 3 दिसम्बर –
स्मार्ट हलचल/उमराह, एक पवित्र इस्लामी तीर्थयात्रा है जिसका बहुत महत्व है और हर साल लाखों मुस्लिम तीर्थयात्री मक्का शरीफ में मस्जिद अल-हरम जाकर इसे करते हैं। उमराह तीर्थयात्रा उन कई तरीकों में से एक है जिसके माध्यम से अपने गुनाहों की तौबा करते है। ज़ियारत उमराह का एक अनिवार्य हिस्सा है जो तीर्थयात्रियों को परम संतुष्टि की भावना प्रदान करता है।
वही काछोला कस्बे के कमालुद्दीन रँगरेज व उनकी शरीके हयात बरकत बानू ओर तहसील क्षेत्र की सबसे कम 19 वर्ष की उम्र में उमराह करने वाली तस्कीन बानू रँगरेज ने
ट्यूर लीडर हाजी मोहम्मद आरिफ़ मीर बीगोद के साथ मक्का मुकर्रमा की जियारत के लिए निकले जिसमें पहली जियारत जबले शोर, गारे शोर, मैदान ए अरफात, जबले रहमत , मैदान ए मुजदलफ़ा , मस्ज़िद ए खेफ ,मीना, नहरे जुबेदा, गारे हीरा के बाद ग्रुप के सभी साहिबान ने मिकात मस्जिद ए जोराना से तीसरे उमराह के लिए 2 रकात नमाज़ अदा की ओर उमराह की नियत करके अहराम पहना फिर जन्नतुल माला , मस्जिद ए फतेह मस्जिद ए जीन, मस्जिद सजर ,की जियारत की फिर उमराह मुकम्मल किया अल्लाह हर एक मुसलमान को इस पाक मुकद्दस जगह पर आने की तमन्ना करता है
की दुआ-काछोला सहित क्षेत्र के बीगोद,श्रीपुरा,से गए उमराह जियारत को गए जायरीनों ने मक्का शरीफ में अपने वतन हिन्दोस्तान में अमन,चैन,खुशहाली,सुख,समृद्धि की दुआ के साथ दुनिया मे शक्तिशाली देश बनने की दुआ की।
जायरीनों ने उमराह कर की जियारत-कमालुद्दीन रँगरेज ने बताया कि
मस्जिद आयशा या मस्जिद ए तनीम मक्का, सऊदी अरब के महत्वपूर्ण स्थान है। यह मस्जिद पवित्र काबा शरीफ से लगभग 5 मील की दूरी पर स्थित है, इसलिए तीर्थयात्री इहराम पहनकर इस मस्जिद में प्रवेश करते हैं। हजरत आयशा को पैगंबर मुहम्मद ने विदाई तीर्थयात्रा के दौरान यहां उमराह करने का निर्देश दिया था, तब से इस मस्जिद का नाम मस्जिद आयशा पड़ा। आम तौर पर तीर्थयात्री इस स्थान पर नफ्ल नमाज पेश करते हैं और उमराह की अपनी पवित्र यात्रा शुरू करते हैं।