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संस्कृति और परंपरा के निर्वहन की अनूठी मिसाल है आजोलिया के खेड़ा की 55 वर्षीय रामलीला

नौकरी, व्यवसाय से जुड़े और उच्च शिक्षित ग्रामवासी निभाते है भूमिका, बच्चे होते है धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू

(पंकज पोरवाल)

भीलवाडा। स्मार्ट हलचल/चित्तौड़गढ़ जिले का निकटवर्ती गांव आजोलिया का खेड़ा आज भी परम्परा का अनूठा उदाहरण हैं। जहां 55 साल से प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रि में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। आधुनिकता के इस युग में जहां एक तरफ आज की युवा पीढ़ी फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल प्लेटफाॅर्म पर रील्स देखकर पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकर्षित हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ आजोलियां का खेड़ा जैसे गांव में पढ़े लिखे और नौकरीपेशा युवा रामलीला जैसे आयोजनों के माध्यम से अपनी परंपराओं को निरंतर आगे बढ़ा रहे हैं। खास बात यह कि यहां रामलीला के किरदार पेशेवर कलाकार नहीं, बल्कि इसी गांव के पढ़े-लिखे युवा व नौकरीपेशा लोग निभाते हैं। आजोलिया का खेड़ा में 50 वर्ष पूर्व रामलीला के लिए बांस की बल्लियों एवं तिरपाल से स्टेज बनाते थे। आज इसी जगह आरसीसी की छत है और दृश्य दिखाने के लिए बड़ी एलईडी का उपयोग किया जाता है। आयोजन से लेकर किरदार निभाने तक का सारा कार्य रामलीला मंडल आजोलिया का खेड़ा के बैनर पर गांव वाले ही करते हैं। कार्यक्रम का सारा खर्च मंडल के सदस्य और ग्रामवासी मिलकर करते है। आधुनिकता के इस दौर में भी यहां की रामलीला का ऐसा महत्व है कि रामलीला देखने व रोल निभाने के लिए बाहर रहने वाले युवा व नौकरीपेशा लोग भी गांव में आ जाते हैं। ये पेशेवर कलाकार नहीं पर रामलीला के संवाद और चैपाइयां तक जुबानी याद है।
नौकरी पेशा और उच्च स्नातक निभाते है किरदार
राम का किरदार पन्ना लाल जाट एमए, हनुमान किशन जाट एमए, लक्ष्मण-डॉ सुभाष शर्मा एमबीए पीएचडी, आईटीआई कमलेश तेली रावण, एमकाॅम हरीश शर्मा दशरथ, परमेश्वर जाट अहिरावण, सचिन त्रिपाटी एमबीए विष्णु, दिलखुश तिवारी कुम्भकरण, बीटेक विष्णु तिवारी मेघनाथ, रामलीला के निदेशक बालू जाट, वरिष्ठ लिपिक डिस्कॉम एवं निर्देशन देवकिशन जाट करते है।
सौहार्द और सद्भाव की भी है मिसाल
प्रतिदिन अलग अलग कलाकार के घर से भोजन बन कर आता है जातीय सद्भाव के साथ बगैर किसी भेदभाव के सभी एक साथ रामलीला के समापन के बाद प्रतिदिन साथ में भोजन करते है। पूर्व कलेक्टर रवि जैन, पूर्व पुलिस अधीक्षक राघवेंद्र सुहास, पूर्व पुलिस अधीक्षक प्रसन्न कुमार खमेसरा भी यहां की रामलीला को देखने आ चुके है। यहां की रामलीला मंडल द्वारा ही इंदिरा गांधी स्टेडियम में आयोजित दशहारा मेला में रावण दहन किया जाता है।
बच्चे होते है धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू
शारदीय नवरात्र में सात दिन तक रोज रात 9 से 12 बजे तक हनुमानजी मंदिर प्रांगण में रामलीला मंचन होता है। गांव के अलावा आसपास के गांवों से भी लोग देखने आते हैं। उत्सव जैसा माहौल रहता है। इस परंपरा से हर साल बच्चे भी रामायण जैसी धार्मिक व सांस्कृतिक धरोहर से रूबरू होते जाते हैं। उनके लिए कई प्रतियोगिताएं भी रखते हैं। इसके अलावा सामूहिक योगदान, व्यवस्थाओं में सहयोग और छुट्टियां लेकर गांव में आने से जुड़ाव मजबूत होता है।

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