भीलवाड़ा । भीलवाड़ा के सिंधी समाज की प्रतिष्ठित और निःशुल्क सेवा के लिए प्रसिद्ध नाड़ीवैद्य भये माँ का शनिवार देर शाम निधन हो गया। 97 वर्षीय भये माँ ने एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से सिंधी समाज में शोक की लहर दौड़ गई। सिन्धु नगर स्थित उनके निवास पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए समाज के लोग उमड़ पड़े।
सेवा का अद्वितीय उदाहरण थीं भये माँ—-
अखंड भारत के सिंध प्रांत में जन्मीं भये माँ नाड़ी वैद्यक की प्राचीन पद्धति में सिद्धहस्त थीं। वे असाध्य बीमारियों का इलाज रसोई की सामग्रियों और जड़ी-बूटियों से करती थीं। उनके उपचार निःशुल्क होते थे, और वे समाज के हर वर्ग के लिए सहज उपलब्ध थीं।
भारतीय सिन्धु सभा के ओमप्रकाश गुलाबानी ने बताया कि भये माँ समाज के लिए ईश्वरीय वरदान थीं। विशेष रूप से अबोध बच्चों के लिए, जो अपनी समस्याएं व्यक्त नहीं कर सकते थे, भये माँ की नाड़ी देखकर बीमारी पहचानने और उसका उपचार करने की क्षमता अद्वितीय थी। उनकी यह विशेषता उन्हें समाज में अम्मा का दर्जा दिलाती थी।
दाह संस्कार और सम्मान
भये माँ का दाह संस्कार रविवार सुबह किया जाएगा। उनके सम्मान में सिंधी सेंट्रल पंचायत ने भीलवाड़ा में सिंधी समाज के प्रतिष्ठानों को रविवार दोपहर 12 बजे तक बंद रखने का निर्णय लिया है। यह श्रद्धांजलि उनके समाजसेवा के प्रति योगदान को दर्शाता है।
संपूर्ण समाज के लिए अपूरणीय क्षति
भये माँ का निधन समाज के लिए एक अपूरणीय क्षति है। वे केवल एक वैद्य नहीं थीं, बल्कि समाजसेवा का प्रतीक थीं। उनकी निशुल्क सेवा ने अनगिनत लोगों की जिंदगी को बेहतर बनाया। उनके जाने से समाज ने एक ऐसा व्यक्तित्व खो दिया है, जो न केवल चिकित्सा के लिए बल्कि अपनी निःस्वार्थ भावना और करुणा के लिए भी जाना जाता था। सिन्धी समाज और भीलवाड़ा के नागरिकों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों का कहना है कि भये माँ की सेवाओं और उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।