Homeभीलवाड़ाधनोप में दड़ा महोत्सव रविवार को

धनोप में दड़ा महोत्सव रविवार को

राजेश शर्मा धनोप।
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दड़ा महोत्सव 14 जनवरी को खेला जाएगा। ठाकुर सत्येंद्र सिंह राणावत ने बताया कि रियासत काल से यह परंपरा चली आ रही है कि ग्रामीणों द्वारा पटेल की मौजूदगी में दड़ा को गढ़ से निकालकर चौक में लाया जाता है। फिर दो घंटे तक लगातार लोग इस खेल का आनंद उठाते है। राजस्थान के भीलवाड़ा शाहपुरा जिले के फुलियाकलां तहसील के धनोप गांव में दड़ा बताता है कैसा रहेगा अगला साल। रियासत काल से दड़ा महोत्सव आयोजन की परंपरा चल रही है।मकर संक्रांति 14 जनवरी को महोत्सव में करीब 14 किलो वजनी इस दड़ा (गेंद) को ग्रामीणों का हुजूम रस्सी से बांधकर खींचता है।इससे आगामी वर्ष का मौसम तथा मिजाज का फैसला करते हैं। अगला साल कैसा होगा यह जानने के लिए बड़ी संख्या में लोग यहां पहुंचते हैं।
ग्रामीणों द्वारा पटेल की मौजूदगी में दड़ा को गढ़ से निकालकर चौक में लाया जाता है। दो घंटे तक लगातार लोग इस खेल का आनंद उठाते हैं।जब दड़ा महोत्सव शुरू होता है तो ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ती है। मकानों की गैलरियों छतों पर पांव रखने तक की जगह नहीं होती है।

*”ऐसे निकलता है परिणाम”*
दड़ा गढ़ की तरफ से हवाले की ओर जाता है तो वर्ष का चक्र शुभ होता है।अगर पश्चिम दिशा में फकीरों के मोहल्ले की ओर जाता है तो साल अशुभ मानते है। दड़ा के गढ़ में चले जाने को मध्यम वर्ष माना जाता है। बता दें कि पिछले वर्ष दड़ा हवेली गढ़ तक पहुंचा था। इस कारण साल अच्छा माना गया था।क्षेत्र में अकाल की स्थिति नहीं बनी थी।

*”घर-घर होती दावत”*
मकरसंक्रांति के दिन दड़ा महोत्सव होने से बाजार बंद रहता है। घरों में चूरमा-बाटी की दावत होती है। गढ़ में पूर्व जागीरदार द्वारा दड़ा की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद इसे कल्याण भगवान के चौक में लाया जाता है।

*”पूजा से होती है शुरुआत”*
दड़ा महोत्सव के दिन धनोप सहित आस पास के 20 किलोमीटर क्षेत्र के ग्रामीण धनोप पहुंचते हैं। मां भगवती की पूजा-अर्चना से दड़ा महोत्सव की शुरुआत होती है। इस दौरान गांव जय कल्याण धणी जी एवं जय मातेश्वरी के जयकारों से गूंज उठता है।

*”खेल में दो दल होते हैं”*
दड़ा खेल के लिए दो दल होते हैं। प्रथम दल में माली, पुजारी, फकीर, गुर्जर, नायक, रैबारी महाजन जाति के लोग शामिल होते हैं. दूसरे दल में बैरवा, कुम्हार, कीर, तेली, लौहार खाती जाति के लोग होते हैं। खेल के बाद गढ़ की तरफ से दल के सदस्यों को गुड़ तथा पालीवाल बोहरा की तरफ से दल के सदस्यों को गुड़ अफीम प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।

*”मनोरंजन व खानपान”*
दड़ा महोत्सव में बच्चों के मनोरंजन के लिए पिछले 3 साल से झूले लगते हैं जिसमें बच्चे झूले झुलकर आनंद लेते हैं। इसके साथ ही गढ़ चौक में मिठाइयां, फल-फ्रूट, कचोरी-समोसे की टेबले तथा गन्ने की बिकरी भी होती है। दड़ा महोत्सव की पूर्व संध्या पर शनिवार 13 जनवरी को गायक कलाकारों द्वारा भजन संध्या का आयोजन भी होगा।

हम आपको बता दे कि 2022 कोरोना काल में भी 14 जनवरी को दडा महोत्सव का आयोजन हुआ था जिसमें एकत्रित हुई भीड़ को सोशल मीडिया पर वायरल होने से कोरोना गाइडलाइन की पालना का उलंघन करने पर तत्कालीन फुलिया थाना अधिकारी रामपाल बिश्नोई को लाइन हाजिर होना पड़ा। वही ग्राम पंचायत धनोप को दस हजार रूपए का जुर्माना देना पड़ा।

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