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राजस्थान के प्रमुख लोक देवता देवनारायण जी

स्मार्ट हलचल/राजस्थान के लोक देवताओं में देवनारायण जी का प्रमुख स्थान है।यह मूलतः गुर्जरों के लोक देवता हैं जो नागवंशीय बगड़ावत कुल के थे बगड़ावतों के मूल पुरुष हरराम चौहान थे।इनके बाधा जी नामक पुत्र हुआ बाधा जी के 24 पुत्र हुए थे जो बगड़ावत के नाम से प्रसिद्ध हुए उनके जेष्ठ पुत्र भुजा उर्फ सवाई सिंह बगड़ावत थे देवनारायण जी भुजा की पत्नी सेढू की संतान थे।इनका जन्म आसींद भीलवाड़ा में 1243 में हुआ उनके पिता सवाई सिंह और भिनाय शासक के मध्य दुश्मनी रही थी।
देव जी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और नीति निपुण थे इनका विवाह धारा नगरी में जयसिंह देव परमार की पुत्री पीपलदे से हुआ है।भिनाय शासक से देव जी का झगड़ा हो गया जिसका कारण गायों का था जिसमें देव जी ने भिनाय शासक को मौत के घाट उतार दिया इससे देव जी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। देव जी का घोड़ा लीलागर नामक था इनको विष्णु का अवतार माना जाता है।
देवजी आयुर्वेद और तंत्र विद्या के भी ज्ञाता थे अतः वे अपनी सिद्धियों तथा आयुर्वेद के ज्ञान से लोगों के कष्टों का निवारण करने लगे उनका अंतिम समय (देवमाली) ब्यावर तहसील के मसूदा से 6 किलोमीटर दक्षिण में व्यतीत हुआ यहीं पर भाद्रपद शुक्ल सप्तमी को ईनका देंहात हुआ। देव जी ने गायों को छुड़ाकर और अपने पिता का बदला लेकर जनमानस में लोक देवता की तरह पूजे जाने लगे।
देव जी का मंदिर महाराणा सांगा ने चित्तौड़ में बनवाया आसींद में सवाई भोज, देवनारायण,सेढू के मंदिर हैं इनकी पूजा शनिवार को होती है भादो शुक्ल दसवीं,अष्टमी और माघ सप्तमी को मेला भरता है।
जोधपुरिया निवाई में देवधाम को गुर्जर समाज के लोग भगवान जगन्नाथ के रूप में पूजते हैं यहां पर घी की ज्योति चौबीसों घंटे चलती रहती है। श्रद्धालुओं द्वारा चढाये जाने वाले घी के लिए एक हौज बना हुआ है यहां पर देव जी की तीन बार आरती होती है देव जी की फड “जंतर” वाद्य यंत्र पर देव जी के भोपो के द्वारा गाए जाती है इस फड में देव जी के कार्यो का बखान किया जाताहै।
देवजी से संबंधित साहित्य “बातदेवजी बगड़ावत री” “देव जी री पड़”देवनारायण का मारवाड़ी ख्याल” “बगड़ावत” आदि पुस्तकों में मिलता है इनके अन्य स्थान गौठ आसींद भीलवाड़ा,देवमाली ब्यावर (अजमेर),देवधाम जोधपुरिया, निवाई टोंक देव डूंगरी पहाड़ी चित्तौड़गढ़ आदि स्थानों पर इनके मंदिर बने हुए हैं
-राजेश कुमार मीना
करौली

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