Homeसोचने वाली बात/ब्लॉगसावधान! जरा संभलकर, मोबाइल देकर बच्चों के दुश्मन बन रहे हैं आप,...

सावधान! जरा संभलकर, मोबाइल देकर बच्चों के दुश्मन बन रहे हैं आप, mobile phone

सावधान! जरा संभलिए, मोबाइल देकर बच्चों के दुश्मन बन रहे हैं आप

अशोक भाटिया

स्मार्ट हलचल।छोटे बच्चों के हाथों में स्मार्टफोन थमाना इन दिनों आम बात हो गई है। बच्चों की जरा-सी शैतानी और रोने पर अभिभावक उनके हाथ में मोबाइल थमा देते हैं। गेम लगाकर या फिर यूट्यूब पर वीडियो चलाकर बच्चों को दे देते हैं ताकि वे मोबाइल पर रमे रहें। लेकिन इस बीच अभिभावक यह भूल जाते हैं कि छोटे बच्चों के लिए मोबाइल जितना मनोरंजन का साधन है, उससे कई ज्यादा खतरनाक भी है। स्मार्टफोन से निकलने वाली खतरनाक रेडिएशन बच्चों की परवरिश पर असर डालती हैं। ये खतरनाक किरणें, बच्चों को कई तरह की बीमारियां भी दे सकती हैं। कई बच्चें वीडियो गेम खेलने के आदि हो जाते हैं जिससे मानसिक तनाव पैदा हो जाता है।
बच्चों में इसकी बढ़ती सहज उपलब्धता समय के साथ भयानक रूप लेती जा रही है। इतनी भयानक कि जिस उम्र के बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है वह हैवान और कातिल तक बनते जा रहे हैं।कुछ ऐसा ही घटना कुछ समय पूर्व छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर में ,जहां मोबाइल फोन छीने जाने से नाराज बच्चे ने फांसी लगा ली । दिल्ली में कंपनी सेक्रेटरी की पढ़ाई कर रही थी. घटना के दौरान माता-पिता व दूसरा भाई हिमांशु शादी में यूपी के गोरखपुर गए थे. घर पर बहन-भाई प्रयांशु और अनन्या थे. बड़ी बहन अनन्या ने प्रियांशु को फोन छोड़कर पढ़ाई करने के लिए कहा तो उसको गुस्सा आ गया और उसने गला दबाकर अपनी बहन की हत्या कर दी.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मोबाइल गेम खेलने से रोकने के कारण 16 साल के बच्चे ने अपनी मां की ही हत्या कर दी। न सिर्फ हत्या की बल्कि शव को दो दिनों तक घर में छिपाकर भी रखा। इस तरह की आपराधिक मानसिकता किसी बच्चे में कैसे विकसित हो सकती है, यह निश्चित ही गंभीर और चिंताजनक बात है। ये कोई अकेली घटनाए भी नहीं है, कई अन्य देशों की रिपोर्ट उठा कर देख लीजिए तो इसी तरह के दर्जन भर से अधिक मामले देखने को मिल जाएंगे। ऐसे में सवाल यह है कि आखिर इस तरह की मानसिकता के पीछे का कारण क्या है? क्या खुद के लिए थोड़ा समय निकालने के चक्कर में हम बच्चों के हाथ में उनके ही विनाश की चाभी थमा रहे है?

इन घटनाओं के पीछे के कारणों के बारे में पता चलता है कि बच्चा मोबाइल गेम का लती हो चुका थे । इससे पहले भी कई गेम्स के कारण भी कई जानलेवा मामले सामने आ चुके हैं। सारा ठीकरा इन्हीं पर क्यों फोड़ना, इंटरनेट-मोबाइल में इसी तरह के और भी कई गेम्स हैं जिन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से आक्रामक प्रवृत्ति विकसित करने वाला माना जाता है, इतना आक्रामक कि बच्चा किसी की जान तक ले ले।
मोबाइल गेम्स की लत ने बच्चों के स्वभाव को आपराधिक और गुस्सैल बना दिया है। वैश्विक स्तर पर गेम के कारण जानलेवा प्रवृत्ति के कई मामले देखने के मिले हैं। इसी साल जनवरी में मोबाइल गेम की लत वाले एक बच्चे ने अपनी मां सहित 3 भाई-बहनों की हत्या कर दी थी। वाशिंगटन में भी इसी तरह के मामले देखे गए। भारत के संदर्भ में बात करें तो ऐसे मामले अक्सर रिपोर्ट किए जाते रहे हैं। सितंबर 2019 में कर्नाटक में 21 साल के नवयुवक ने अपने पिता की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी क्योंकि उन्होंने मोबाइल गेम खेलते समय मोबाइल छीन लिया था। जुलाई 2021 में इसी तरह बंगाल में मोबाइल गेम को लेकर हुई बहस में एडिक्टेड युवक ने अपने भाई की हत्या कर दी थी। ऐसे कइयों मामले हैं, जो इस बात की तरफ इशारा करते हैं कि बच्चों में मोबाइल फोन्स की बढ़ती सहज उपलब्धता और आक्रामक गेम्स की लत काफी गंभीर रूप लेती जा रही है।


पीएमसी जर्नल में में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल गेम की लत, हत्या और आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि किशोरों और वयस्कों में मनोवैज्ञानिक पूर्वाग्रह की स्थिति हो सकती है। इस तरह के वीडियोगेम्स पर दिन में कई घंटे बिताना मस्तिष्क की प्रवृत्ति को इस खेल के रूप में परिवर्तित करती जाती है। ऐसे गेम्स आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं ऐसे में इसकी लत गंभीर हो सकती है। मोबाइल गेम्स के कारण बढ़ते आक्रामक व्यवहार के बारे में मनोचिकित्सकों का कहना है कि बालपन-युवावस्था में हम जिस तरह की चीजों का अधिक देखते, सुनते और पढ़ते हैं, उसका दिमाग पर सीधा असर होता है। मोबाइल गेम्स के साथ भी यही मामला है। ये लत का कारण बन जाते हैं और एडिक्शन के कोर में व्यावहारिक परिवर्तन प्रमुख होता है। अगर घरवाले इसे अचानक से छुड़ाने की कोशिश करते हैं, तो यहां विड्रॉल की स्थिति में आ जाती है, उसी तरह जैसे अल्कोहल विड्रॉल होता है जिसमें अगर किसी शराबी से अचानक शराब छुड़वाई जाए तो उसके व्यवहार में आक्रामक परिवर्तन हो सकता है। मनोचिकित्सक कहते हैं, बच्चे में ‘ऑब्जर्वेशन लर्निंग’ की क्षमता अधिक होती है। बच्चे स्वाभाविक रूप से किसी चीज को समझने से ज्यादा चीजों को देखकर सीखने में अधिक निपुड़ता वाले होते हैं। ऐसे में अगर बच्चे का समय मोबाइल फोन्स पर अधिक बीत रहा है, साथ ही वह हिंसक गेम्स पर अधिक समय बिता रहे हैं तो इसका सीधा असर मस्तिष्क को प्रभावित करता है। मोबाइल-वीडियो गेम्स का नेचर बच्चों को और प्रभावित करता है क्योंकि गेम खेलते समय आपका पूरा ध्यान टास्क पर होता है। ऐसे में अगर इसकी प्रवृत्ति हिंसात्मक, मार-पीट, गोली-बारी वाली है तो यह बच्चे के दिमाग को उसी के अनुरूप परिवर्तित करने लगती है।

रोज घंटों मोबाइल में इस तरह के गेम्स पर समय बिताने से बच्चों में इसकी लत लग जाती है। लत का मतलब, उस गेम के बिना वह रह नहीं पाते, इस दौरान जो भी उन्हें उस गेम से दूर करने की कोशिश कर रहा होता है, वह बच्चों का दुश्मन बन जाता है। इस तरह के विकारों से बच्चों को मुक्त रखने के लिए माता-पिता को बच्चों की मॉनिटरिंग करते रहना जरूरी हो जाता है। आप देखिए कि बच्चे कि तरह का व्यवहार कर रहे हैं, किस तरह के गेम्स खेल रहे हैं, उनका दूसरों के साथ व्यवहार कैसा है? मोबाइल फोन्स से बच्चों की बढ़ती दोस्ती को स्वास्थ्य विशेषज्ञ, बेहद अस्वास्थ्यकर मानते हैं। यह न सिर्फ बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक आदत है साथ ही इससे शारीरिक समस्याओं का खतरा भी काफी बढ़ जाता है। बच्चों के मोबाइल फोन्स पर अधिक समय बिताने की आदत को स्वास्थ्य विशेषज्ञ कई प्रकार से हानिकारक मानते हैं। मोबाइल फोन पर बहुत अधिक समय बिताने के कारण बच्चों में शारीरिक निष्क्रियता बढ़ती जाती है, जो मोटापा और अन्य आंतरिक स्वास्थ्य जटिलताओं के जोखिम को बढ़ाती है। इसके अलावा अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जर्नल के अनुसार, मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से मस्तिष्क और शरीर के अन्य भागों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। मोबाइल फोन्स की लत को अध्ययनों में विशेषज्ञ कैंसर, मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव, ट्यूमर जैसी समस्याओं को बढ़ावा देने वाला मानते हैं।

इसके अलावा मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में नींद की कमी और नींद की गुणवत्ता में गिरावट जैसी दिक्कतें अधिक देखने को मिली हैं। शोध से पता चलता है कि सेल फोन की नीली रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन में बाधा डालती है। मेलाटोनिन वह हार्मोन है जो नींद-जागने के चक्र को नियंत्रित करता है (जिसे सर्कैडियन रिदम भी कहा जाता है)। जब यह हार्मोन असंतुलित हो जाता है, तो इसके कारण नींद संबंधित विकारों की शिकायत बढ़ जाती है। नींद की कमी को अध्ययनों में कई प्रकार के गंभीर रोगों का कारक माना जाता है। बच्चों सहित सभी आयुवर्ग के लोगों में बढ़ते मोबाइल के इस्तेमाल को विशेषज्ञ मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से भी काफी हानिकारक मानते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पहले के समय में बच्चे बाहर खेलते थे, प्रकृति के साथ जुड़ाव था, एक दूसरे से मिलते थे। वहीं अब मोबाइल ने इन सभी आदतों को सीमित कर दिया है लिहाजा बच्चों में कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं विकसित होने लगी हैं।

किसी भी चीज की लत मस्तिष्क के रसायनों को प्रभावित करती है, इसी तरह मोबाइल की लत के कारण बच्चों में डोपामाइन न्यूरोट्रांसमीटर से संबंधित विकार बढ़ रहे हैं। डोपामाइन एक न्यूरोकेमिकल संदेशवाहक है, यह आपको रिवार्ड फील कराने वाले अनुभव देने में मददगार है। मोबाइल ने इस संदेशवाहक की गतिविधि को प्रभावित कर दिया है। यही कारण है कि एक दशक के पहले के बच्चों की तुलना में अब के बच्चे ज्यादा आक्रामक, झगड़ालू, सुस्त और बात-बात पर परेशान और चिड़चिड़े प्रवृत्ति वाले बनते जा रहे हैं। सामाजिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर बताते हैं, माता-पिता थोड़ा आराम करने, बच्चों को कुछ खिलाने या बच्चों को व्यस्त रखने के चक्कर में मोबाइल थमा देते हैं। यह बच्चों की धीरे-धीरे लत बनती जाती है, ऐसी लत जिसके बिना बच्चे रह ही नहीं पाते। आपको पता भी नहीं चलता कि आपने थोड़ा आराम पाने के चक्कर में बच्चों के हाथ में विनाश की चाभी थमा दी है। मोबाइल ने बच्चों की सहज प्रकृति को जैसे खत्म सा कर दिया है। बच्चे, बच्चे कम प्रौढ़ ज्यादा होते जा रहे हैं। मसलन हमने अपने थोड़े से आराम के चक्कर में बच्चों से उनके बचपन को छीन लिया है, इसके नतीजे आए दिन सामने आते रहते हैं। प्रकृति ने हर उम्र के आधार पर सजह कार्य निर्धारित किए हैं। बच्चों का स्वभाव बाहरी वातावरण से जुड़ना, अपने उम्र के बच्चों के साथ खेलना-दोस्त बनाने वाला होता है। मोबाइल ने इन सब को खत्म कर दिया है। आज के बच्चों के लिए लोगों के बीच खुद को ढालना कठिन हो गया है, वह दूसरों से बात नहीं कर पाते, प्रकृति और मिट्टी से दूर हो गए हैं, यह भविष्य के लिए जरा भी सुखद नहीं है। समय के साथ इसके दुष्परिणाम बढ़ते जाएंगे।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES