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प्रदेश में बाल विवाह की मौजूदा स्थिति चिंताजनक’ रोकथाम के लिये समुदाय स्तर पर समन्वित प्रयासों की महती आवश्यकता

बाल विवाह पर राजस्थान उच्च न्यायलय का न्यायिक हथौड़ा, अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाहों पर सख्ती से रोक के आदेश, बाल विवाहों की रोकथाम में नाकामी पर पंच व सरपंच होंगे जवाबदेह

मामले की गंभीरता और तात्कालिकता का संज्ञान लेते हुए राजस्थान उच्च न्यायलय ने “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस” की जनहित याचिका पर फौरी सुनवाई करते हुए जारी किया आदेश

भीलवाड़ा । प्रदेश में बाल विवाह की मौजूदा स्थिति को ‘चिंताजनक’ बताते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने फौरी आदेश जारी कर राज्य सरकार से कहा है, कि वह अक्षय तृतीया के मद्देनजर यह सुनिश्चित करे कि कहीं भी बाल विवाह नहीं होने पाए। साथ ही आदेश में कहा गया है कि बाल विवाह को रोकने में विफलता पर पंचों-सरपंचों को जवाबदेह ठहराया जाएगा । राजस्थान उच्च न्यायलय का यह फौरी आदेश “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस” और अन्य की जनहित याचिका पर आया है। इन संगठनों ने अपनी याचिका में इस वर्ष 10 मई को अक्षय तृतीया के मौके पर बड़े पैमाने पर होने वाले बाल विवाहों को रोकने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की थी । “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस” के सहयोगी संगठन नवाचार संस्थान पहले से ही भीलवाडा और चित्तोगढ़ जिले में बाल विवाह के खिलाफ मजबूती से अभियान चलाते हुए यह सुनिश्चित करने में लगा है, कि अक्षय तृतीया के दौरान जिले में कोई बाल विवाह नहीं होने पाए। राजस्थान उच्च न्यायलय के इस फैसले से इन प्रयासों को और बल मिलेगा।
याचियों द्वारा बंद लिफाफे में सौंपी गई, अक्षय तृतीया के दिन होने वाले 54 बाल विवाहों की सूची पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति शुभा मेहता और पंकज भंडारी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को इन विवाहों पर रोक लगाने के लिए ‘बेहद कड़ी नजर’ रखने को कहा है । यद्यपि इस सूची में शामिल नामों में कुछ विवाह पहले ही संपन्न हो चुके हैं, लेकिन 46 विवाह अभी होने बाकी हैं। खंडपीठ ने कहा, “सभी बाल विवाह निषेध अफसरों से इस बात की रिपोर्ट मंगाई जानी चाहिए कि उनके अधिकार क्षेत्र में कितने बाल विवाह हुए और इनकी रोकथाम के लिए क्या प्रयास किए गए।” आदेश में यह भी कहा गया कि राज्य सरकार सुनिश्चित करे कि सूची में शामिल जिन 46 बच्चों के विवाह होने हैं, वे नहीं होने पाएं।”
खंडपीठ ने यद्यपि इस बात का संज्ञान लिया कि राज्य सरकार के प्रयासों से बाल विवाहों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, फिर भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (2019-21) के आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में 20-24 आयु वर्ग की 25.4 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 साल की होने से पहले ही हो गया था | जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 23.3 प्रतिशत है।
“जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस” के संस्थापक भुवन ऋभु ने कहा, “बाल विवाह वह घृणित अपराध है जो सर्वत्र व्याप्त है और जिसकी हमारे समाज में स्वीकार्यता है। बाल विवाह के मामलों की जानकारी देने के लिए पंचों व सरपंचों की जवाबदेही तय करने का राजस्थान हाई कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक है। बाल विवाह के खात्मे के लिए भारत सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदम पूरी दुनिया के लिए एक सबक हैं, और राजस्थान उच्च न्यायलय का यह फैसला इस दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।” “जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन एलायंस” पांच गैर सरकारी संगठनों का एक गठबंधन है, जिसके साथ देश के 120 से भी ज्यादा गैर सरकारी संगठन सहयोगी के तौर पर जुड़े हुए हैं, जो पूरे देश में बाल विवाह, बाल यौन शोषण और बाल दुर्व्यापार जैसे बच्चों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे हैं।
नवाचार संस्थान के सचिव एवं नेशनल यूथ अवार्डी अरुण कुमावत ने कहा, “बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई बहुआयामी है, और समाज के सभी स्तरों पर कार्रवाई की आवश्यकता है। यह ऐतिहासिक फैसला हमारी इस जंग में एक अहम मील का पत्थर है । पंचों व सरपंचों को जवाबदेह ठहराने से बाल विवाह के कई रास्ते बंद हो जाएंगे, जिससे राजस्थान में बाल विवाह की रोकथाम के हमारे प्रयासों को बल एवं सहायता मिलेगी।” माननीय राजस्थान उच्च न्यायलय का यह आदेश ऐसे समय आया है, जब अक्षय तृतीया के मौके पर बाल विवाह के मामलों में खासी बढ़ोतरी देखने को मिलती है और जिसे रोकने के लिए सरकार के साथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे तमाम गैर सरकारी संगठन हरसंभव प्रयास कर रहे हैं।

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