>अशोक भाटिया
स्मार्ट हलचल/हाल ही में राजस्थान के उदयपुर पहुंचीं पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे ने एक ऐसा बयान दे दिया, जिसकी सियासी गलियारों में चर्चा तेज है। सुंदर सिंह भंडारी चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से आयोजित विशिष्ट जन सम्मान समारोह और व्याख्यान माला कार्यक्रम को वसुंधरा राजे संबोधित कर रही थी।उस दौरान उन्होंने कहा कि सुंदर सिंह भंडारी ने चुन-चुनकर लोगों को भाजपा से जोड़ा। सुंदर सिंह भंडारी ने एक पौधे को वृक्ष बनाया। उन्होंने संगठन को मजबूत करने का काम किया। कार्यकर्ताओं को ऊंचा उठाने का काम किया।
उन्होंने कहा कि भंडारी जी ने राजस्थान में भैरोंसिंह शेखावत सहित कितने ही नेताओं को आगे बढ़ाया, लेकिन वफा का वह दौर अलग था। तब लोग किसी के किए हुए को मानते थे, लेकिन आज तो लोग उसी अंगुली को पहले काटने का प्रयास करते हैं, जिसको पकड़ कर वह चलना सीखते हैं। अब वसुंधरा राजे के इस बयान के बाद तमाम तरह के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। चर्चा है कि राजस्थान विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से वसुंधरा राजे और पार्टी नेतृत्व के बीच तल्खी देखने को मिली थी, उसकी परते खुलने लगी हैं।
चुनाव के दौरान मन में जो कसक थी, वो अब धीरे-धीरे बयानों के जरिये सामने आ रही है। कार्यक्रम में असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया भी मौजूद रहे। राजे ने कहा कि गुलाबचंद कटारिया ने चुन-चुनकर लोगों को भाजपा से जोड़ा है। कटारिया अब असम के महामहिम हैं, लेकिन वह दूर रहकर भी हम लोगों के पास है और ख्याल रखते हैं। दरअसल राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे को लेकर वसुंधरा राजे और गुलाबचंद कटारिया के बीच भी तल्खी की खबरें सामने आयी थी। इसके अलावा चुनावी नतीजों के बाद पार्टी आलाकमान ने राजे को नजरअंदाज करके भजनलाल शर्मा को राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी। ऐसे में दबे स्वर में ही सही भाजपा शीर्ष नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच मनमुटाव की खबरें गाहे-बगाहे सुर्खियां बनती रही हैं।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा राजस्थान में ग्यारह सीटों पर सिमट कर रह गई थी। लोकसभा चुनाव में भाजपा और मोदी का जादू नहीं चला । तमाम दिग्गज नेताओं का हालत खराब हो गई । कई दिग्गज नेताओं की साख भी दांव पर लगीं हुई थी । आपको बता दें कि मोदी सरकार 3.0 में कोटा सांसद ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष चुन लिए गए हैं। बिड़ला का लगातार दूसरी बार इस पद पर काबिज होना राजस्थान में बदलाव की राजनीति की तरफ इशारा कर रहा है, वहीं विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश की राजनीति में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं। पहले प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बड़ा पावर सेंटर हुआ करती थीं। लेकिन अब समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं। अब एक पावर सेंटर बतौर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा हैं। इससे अलग लोकसभा अध्यक्ष बिरला प्रदेश में नए पावर सेंटर के रूप में नजर आ रहे हैं। आपको बता दें कि बिरला की गिनती मोदी-शाह के नजदीकी नेताओं में होती है।
दरअसल, राजस्थान की राजनीति में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा को नजरअंदाज करने का दौर चल रहा है… वसुंधरा राजे को चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री फेस घोषित नहीं किया। इसके बाद उनके बेटे दुष्यंत सिंह को मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली है। लगातार नजरअंदाज किए जाने का दर्द हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा की जुबान पर भी आ गया ।
आपको बता दें कि वसुंधरा राजे विधानसभा चुनाव के बाद से ही प्रदेश में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी वे केवल अपने बेटे दुष्यंत के लोकसभा क्षेत्र झालावाड़ तक ही सीमित रहीं । प्रदेश में स्टार प्रचारक की सूची में शामिल होने के बावजूद राजे झालावाड़ के अलावा एक या दो जगह ही प्रचार के लिए पहुंची थीं । जिसको लेकर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के बाद से राजे का कोई भी राजनीतिक बयान सामने नहीं आया था। लेकिन लंबे समय बाद अब राजे ने चुप्पी तोड़ी है… इस बयान के जरिए राजे उनके संरक्षण में आगे बढ़ने वाले नेताओं को निशाने पर लिया है। वहीं राजस्थान के सियासी जानकारों का कहना है कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भी कभी वसुंधरा राजे के नजदीकियों में हुआ करते थे । इन्हीं नजदीकियों के चलते पहली बार विधायक बनने पर ही बिरला वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव बनने में सफल रहे । वहीं जल्द ही बिरला ने दिल्ली में बेहतर संबंधों के आधार पर अपना अलग वजूद बना लिया ।और 2023 में वसुंधरा के मुकाबले मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में गिने जाने लगे। अब वे प्रदेश के राजनीति में वसुंधरा के बराबरी में आकर खड़े हो गए हैं,और वे एक नए पावर सेंटर बनकर उभरे हैं।
वहीं प्रदेश की राजनीति में भविष्य के निर्णयों में अब बिरला की अहम भूमिका होगी। इसके संकेत खुद गृहमंत्री अमित शाह ने 20 अप्रैल को कोटा की रैली के दौरान दिए थे । शाह ने कहा था कि आप ओम बिरला को संसद भेज दो, बाकी जिम्मेदारी हमारी है। बिरला के पदग्रहण के साथ ही प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरणों के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ समेत कई नेता उन्हें बधाई देने दिल्ली पहुंचे। आपको बता दें कि बिरला 2003 से अब तक तीन बार विधानसभा। और तीन बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। पीएम मोदी की पसंद और लोकसभा अध्यक्ष के तौर पर पिछले कार्यकाल के बेहतर परफॉर्मेंस को देखते हुए बिरला को दोबारा मौका मिला है । पीएम मोदी संसद में दिए भाषण में भी ओम बिरला की तारीफ कर चुके हैं। बिरला लगातार दूसरी बार स्पीकर बने हैं। यह पांचवी बार है जब कोई स्पीकर एक लोकसभा के कार्यकाल से अधिक इस पद पर रहेगा।
वहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजस्थान के हाड़ौती की दोनों लोकसभा सीटों पर भाजपा को जीत मिली है। और विधानसभा के चुनाव में भी भाजपा को हाड़ौती में कम नुकसान हुआ था। इसलिए 61 साल के ओम बिरला को दोबारा लोकसभा अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण संवैधानिक पद देकर एक बड़ा संकेत दिया है । अभी तक हाड़ौती क्षेत्र से वसुंधरा राजे बड़े नेता के तौर पर जानी पहचानी जाती थीं । वहीं बिरला इस बार बड़े मुश्किल से चुनाव जीतकर आए हैं और उन्हें 50 हजार से कम वोटों से जीत मिली है , जबकि, पिछली बार 2.5 लाख वोटों से जीत मिली थी । इसलिए इस बार उनकी असल परीक्षा थी।
आपको बता दें कि हाड़ौती में अभी तक वसुंधरा राजे को बड़ा नेता माना जा रहा था। लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद ओम बिरला अब इस क्षेत्र के बड़े नेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में राजस्थान की पूरी राजनीति बदल जाएगी और हाड़ौती क्षेत्र में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में जो भी भितरघात हुआ था अब उसे ठीक करना भी बिरला के जिम्मे होगा। दूसरी तरफ, राजे के कई समर्थक विधायक अभी भी बगावत के सुर बुलंद कर रहे हैं, उन्हें संभालना भी पार्टी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा ।आपको बता दें कि भाजपा और नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के बाद बसुंधरा राजे से किनारा कर लिया है जिससे राजे को बहुत ठेस पहुंचा है। वहीं अब राजे आने वाले दिनों में क्या फैंसला करती है। यह तो आने वाला वक्त तय करेगा । पर अब यह तय है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा राजस्थान में डाउन फाल की परते धीरे – धीरे खुल रही है ।