The one who raised the voice of truth was buried
— कैलाश चंद्र कौशिक
जयपुर! स्मार्ट हलचल/सवाई माधोपुर तत् कालीन जिला पशु पालन अधिकारी तहत बालेर (खंडार तहसील में पशु चिकित्सालय 1992 – 93 में यातायात व्यबस्था से कोसों दूर स्थित था!
एक ऐसा कर्मी पशु चिकिसा सहायक जो कभी आदर्श नगर जयपुर में पागलपन की चिकित्सा सही/ छद्म नाम से चिकित्सा लेकर प्रभारी, स्टोर कीपर, कार्यालय प्रभारी रहा था! चालाक इतना कि उपस्थिति रजिस्टर ताले में/किराये के आवास पर रखता था! किसी की हाजिरी मर्जी पर होती थी, यंहा तक कि खुद गायब रहे तो शिकायत नहीं हो सके, खुद दूसरे कर्मी से पोस्ट कार्ड पर यह लिखा लिया जाता कि हाजिरी करने वाला अधीन कर्मी अभी अभी आया है और अब आप प्रभारी कंही भी जा सकते हैं मतलब साफ़ है! प्रभारी बेचारा सही है और गलत हैं! इस पोस्ट कार्ड को स.मा. पोस्ट ऑफिस में डाल कर प्राप्त मय सील और दिनांकित राजकीय प्रमाण रखा करता था!मजबूरन अधिकारियों को सूचित पत्रों से किया, डाक विभाग बालेर में ई.डी.एम.सी. के भाई के मकान मालिक का भाई था और जिला कार्यालय सेटिंग थी जंहा अन्य की सूचना गायब कर ली जाती थी! खुद ड्यूटी पर मारपीट कर रहा है, मेडिकल चिकित्सा दोनों लेते हुए हैं! पहले खुद , बाद में पीड़ित कर्मी चिकित्सा लेता है! क्योंकि पहले वाले को पुलिस सरंक्षण मिलता है! दूसरे कर्मी का बिल पास पास बिलंब से हो गया! खुद के बालेर में वैद्य प्रभारी भाई की सलाह पर चिकिसा बिल नहीं उठाया है! क्योंकि इरादा तो और था, स्वेच्छा से अनुपस्थिति से सेवा षड्यंत्र था! जयपुर निदेशालय में निदेशक रंजन साहब मिले, अवलोकन किया और मौखिक आज्ञा से नये पन्ने पर हाजिरी करने का फरमान दिया, हालांकि ऐसे उपस्थिति पंजिका नहीं होती है! बहस नहीं की जा सकती… लेकिन जयपुर मुख्यालय से डा. एम.एम.माथुर को जांच को आदेशित किया जो कभी नहीं पहुँचे! निदेशालय पत्र प्राप्ति से ही गायब हो गए! बिना सुविधा शुल्क कोई काम नहीं होता था! डॉ. प्रेम पुरोहित, पुरानी बस्ती जयपुर ने चिकित्सा दी, इंजेक्शन और दवाइयाँ दी, कहा बेटा तेरे साथ मारपीट हुई है, पुलिस को लिखू.. मैंने कहा निदेशक महो. को बता दिया है, कंही नाराज नहीं हो जांयें! जाँच को कोई नहीं आने पर कोरे पन्नों का उपस्थिति और कार्य ओ.पी.डी. रजिस्टर बनाया ग्राम पंचायत और बीमार पशुओं की चिकित्सा में आये पशु मालिक से हस्ताक्षरित हुआ! ग्राम पंचायत की मीटिंग्स में चिकित्सालय का प्रतिनिधित्व करता रहा,पहले भी प्रतिनिधित्व किया,पूर्व में वेतन दिया! यह उल्लेखनीय है कि एकाधिकार प्राप्त प्रभारी के पास ही रिसिप्ट और डेस्पेच रजिस्टर, डाक टिकट, केश बुक, बिल निर्माण, सील, हस्ताक्षर भी वरिष्ठ कर्मी के पास होने से मनमानी हुई?? अन्य सईस आरक्षित जाति से होने से यह डरता था! उसका आना जाना पहले से चलता रहा!
उपरांत शिवरात्रि पशु मेला करौली ड्यूटी ली, आने पर उपस्थिति दर्ज नहीं करने दी!17 मार्च,1993 में ड्यूटी पर हाजिरी नहीं करने दी,बाद में भी नहीं मामला गफलत में, मारपीट झगडा किया, चिकित्सा है!हाजिरी करने नहीं दी गई, स्थानांतर मित्रपुरा (स.मा.) कराना पड़ा तब उपस्थिति दर्ज हुई और वेतन दिया गया और जुलाई,1993(31 दिवस)पूरा किया! जबकि जनवरी,93 का ऐ.सी.रोल पर हस्ताक्षर करा अपने काम में ले लिया,बा मुश्किकुछ अन्श दिया, लिखित को इंकार किया! डा. मेघेद्र पाल ने जाँच की मुझे सही पाया गया! रिपोर्ट की प्रति चाही, नहीं दी गई! जिसे जिला पशु पालन अधिकारी अजय कुमार और करतार सिंह संस्थापन सेवा निवृत् थानेदार कानून विद,मेघेद्र पाल से मूल रिपोर्ट बदल दी! जबकि डिस्पेच प.चि.करौली की ऑफिस कॉपी तक मंगवा कर नष्ट कर दी! यह 3 बर्ष बाद जाँच की, उसी को बदलबा कर पुनः जाँच को बना कर फॉर्मल कार्यवाही, सब कुछ पूर्व निर्धारित अपनी इच्छा अनुसार औपचारिक सीधे सेवा समाप्ति डा.उमाकांत थानवी से करवाई! जबकि मेरे वेतन, भत्ते रोके गए! मजबूरन मैंने शिकायत ए.सी.बी.भेजी, जंहा गलत सूचना दी गई! बच्चों की तरह कई बार, बिना वेतन के, अल्प समय में स्थानांतरण किये गए! मुख्यमंत्री महो.के प्रमुख सचिव मैथ्यू साहब ने जाँच कर भुगतान कराया,मुझे इस ईमानदार अधिकारी ने कहा मैंने बेशर्म निदेशक को बहुत बर्षों तक तुमने बनाये बिल पटक रखे हैं!
तपेश पंवार ( आरक्षित वर्ग) तक को अफसोस हुआ, इस निदेशक से मैं बात नहीं करता हूँ, यही चक्कर लगा रहा है, फिर कहा तुम्हें सुना ही नहीं गया है! यही मैं लिखता हूँ! कोर्ट से पहले स्टे लेना चाहिए, मैं अन्विज्ञ था! मूल प्रमाण पत्र इन्हें बाद में दे दिये, पहले देने पर जाँच रिपोर्ट की तरह जला देते,यह स्पेशल क्रमांक से थे कंही बदल नहीं जायें, डिस्पेच से मित्रपुरा कार्य मुक्ति, नो डूज लिया गया बाद में कुछ भी करो? और 1से 10 ,जुलाई,1993 का वेतन दिया गया! उपस्थिति दर्ज नहीं करने दी, यंहा से जाओ, कितनी घेरा बंदी, मनमानी है! इसी लिए कर्मी उपार्जीत अवकाश की स्वीकृति को रिश्वत देते हैं, वरना भुगतान नही होता है!जबकि ग्राम पंचायत और बालेर जन मानस नांन जुडिशियल स्टाम्प पर कर्मचारी की हाजिरी प्रमाणित किया है! जो मान्य हैं! इसी लिए सचिव पंवार ने कहा मुझे सुना ही नहीं गया है वरना इन्हें जाँच में तुम्हें भुगतान करने और मनमानी करने वाले प्रभारी के विरुद्ध कार्यवाही करनी पड़ती? आपको मजबूरन कोर्ट जाना पड़ेगा,मुझे तुम्हारे निदेशक के खिलाफ कार्यवाही को समय भी नहीं है!
हाई कोर्ट सिर्फ तारीखों का न्यायालय है! जंहा सरकारी वकीलों का सदैव अनुपस्थित रहना, अपना दूसरी जगह ड्युटी दर्शित करना और अनावश्यक कागजात पेश कर फाइल मोटी करना है, ताकि मोटी फाइल जजस् देखते ही नहीं हैं? फिर पेंडेंसी क्लीयर करने के प्रयास विभाग भी नहीं करता है, चाहे आई.ओ.सी. प्रकरण के नहीं करते हैं और सभी बर्षों से अपने वेतन, भत्ते ड्रॉ करते हैं और बोझ बने हुए हैं!
क्या वरिष्ठ शासन अधिकारी निस्तारण में प्रभावी कार्रवाई कर पीड़ित पक्ष को राहत और सही न्याय देंगे, वरना विलंबित न्याय, अन्याय से कम नहीं है? पूर्व में पत्रकार भक्त भोगी और जख्मों से आज तक पीड़ित रहा है! हकीकत जुंबा पर आई और अमिट आलेख बन कर सत्य आया है!