Homeराज्यउत्तर प्रदेशकाशी में ऐतिहासिक महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच भस्म की होली!

काशी में ऐतिहासिक महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच भस्म की होली!

काशी में ऐतिहासिक महाश्मशान पर जलती चिताओं के बीच भस्म की होली!Historical crematorium in Kashi

देश-दुनिया भर से आते हैं लाखों लोग

 शीतल निर्भीक
लखनऊ। स्मार्ट हलचल/उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक भगवान् भोलेनाथ की नगरी काशी के मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म की होली मनाई जाती है। इस दौरान श्मशान घाट पर धधकती चिताओं के बीच बुझती चिताओं के भस्म से साधू-संत और भक्त होली खेलते हैं।

उत्तर-प्रदेश की काशी एक ऐसा शहर है जहां मृत्यु का आलिंगन और मौत पर नृत्य होता है। ये एक ऐसा शहर है जहां श्मशान में भी फागुन मनाया जाता है। जी हां, जीवन के शाश्वत सत्य से परिचित कराती स्थली पर होली खेलने का दृश्य सिर्फ यहीं नजर आता है।

काशी ऐसा स्थान है जहां पर लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए आते हैं। वहीं महाश्मशान मणिकार्णिका घाट व हरिश्चन्द्र घाट पर फागुन मनाया जाता है। इन घाटों पर 24 घंटे चिताएं जलती रहती हैं। यहां एक तरफ चिताएं धधकती रहती हैं तो दूसरी ओर बुझी चिताओं की भस्म से जमकर साधु-संत और भक्त होली खेलते हैं। जिसमें काशी के लोग ही नहीं बल्कि विदेशी पर्यटक भी शामिल होते हैं। मथुरा के होली उत्सव के अलावा काशी की होली बेहद प्रसिद्ध है।

ज्ञातव्य हो कि काशी एकमात्र ऐसा शहर है जहां फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन हरिश्चन्द्र घाट पर और अगले दिन मर्णिकर्णिका घाट पर हर साल होली का उत्सव मनाया जाता है। जिसमें चिता की राख से होली खेली जाती है।

कांशी की ये है मान्यताएं!

इस होली की सनातन धर्म में कई धार्मिक मान्यताएं हैं, जिसके अनुसार भगवान भोलेनाथ ने यमराज को हराने के बाद चिता की राख से होली खेली थी। तभी से इस दिन को यादगार बनाने के लिए प्रत्येक वर्ष भस्म की होली खेली जाती है। साथ ही शिव अघोरियों और भूत-प्रेतों के साथ भस्म से होली खेलते हैं। इस होली को मृत्यु पर विजय का प्रतीक भी माना जाता है।हालांकि इसका कोई भी प्रमाण शास्त्रों या पुराणों में नहीं मिलता है।

जाने कब है भस्म की होली!

हरिश्चन्द्र घाट पर 20 मार्च को व मर्णिकर्णिका घाट पर 21 मार्च को भस्म की होली खेली जाएगी। इस दौरान महाश्मशान पर भस्म की होली खेलने के लिए जनसैलाब उमड़ता है।

ऐतिहासिक हरिश्चन्द्र घाट अघोरी बोले !

हरिश्चन्द्र घाट पर बैठे अघोरी ने कहा की होली खेलने की यह परंपरा कई साल पुरानी है। इसमें हम अघोरी महादेव को नमन करते हुए, चिताओं की भस्म को उड़ाते हुए होली खेलते हैं। अघोरियों की बरात कीनाराम स्थल से हरिश्चन्द्र घाट पर आती है। जिसमें देशभर के अघोरी शामिल होते हैं। उनमें से कुछ अघोरी काशी में ही रूक जाते हैं।

स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर 31 जनवरी 2025, Smart Halchal News Paper 31 January 2025
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
स्मार्ट हलचल न्यूज़ पेपर  01 अगस्त  2024, Smart Halchal News Paper 01 August 
news paper logo
AD dharti Putra
logo
AD dharti Putra
RELATED ARTICLES